Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Mar 2024 · 2 min read

कुरुक्षेत्र की व्यथा

इन्द्रप्रस्थ से ही बात शुरु हुई थी
अब जाकर पाॅंच ग्राम पर ठहरी
जिद्दी दुर्योधन भी अड़ा हुआ था
खाई भी हो गई थी बढ़ कर गहरी

धरा अब यहाॅं धरा कहाॅं रही थी
रक्त की जब खुली नदी बही थी
महाध्वनि थी धनुष टंकार की
और वीर योद्धाओं के हुंकार सी
कोई उम्मीद अब थी कहीं नहीं
जो भी हो रहा वहाॅं था वही सही

रणभूमि कुरुक्षेत्र कर रहा पुकार
बोझ अब उससे सहा जाता नहीं
पर पापियों का अन्त देखे बिना
उसे अब रहा भी तो जाता नहीं

रक्त से सना हुआ परिधान मेरा
अब दिख रहा पूरा लाल लाल है
जिधर भी मैं देखता हूॅं उधर ही
महा चक्रव्यूह का बिछा जाल है

जब पाप का वहाॅं फूटा था घड़ा
स्वयं काल वहाॅं सम्मुख था खड़ा
था वीर अभिमन्यु जैसा महारथी
धोखे से मिली उन्हें कैसी वीरगति
मन तो अब पूरी तरह कांप रहा
नीचे गिरने का न कोई नाप रहा
ज्ञान अज्ञान तो सिर्फ यहाॅं शब्द था
आज हर ज्ञानी यहाॅं नि:शब्द था
धैर्य और धीरज का कोष था रिक्त
बंजर ह्रदय न कोई था स्नेह सिक्त
पग पग पर अनुशासन हुआ था भंग
कपटी दुर्योधन का बदला हुआ था रंग

कर्ण,शकुनि और दुशासन को छोड़
दुर्योधन किसी की नहीं सुन रहा था
कपट से हस्तिनापुर सिंहासन का
मन में स्वर्णिम सपना बुन रहा था

अब तो ना कोई भी इच्छा थी कहीं
बस केवल मृत्यु की प्रतीक्षा ही रही
सहस्त्र तीरों का बड़ा शैय्या था गड़ा
देवव्रत भीष्म उस पर लेटा था पड़ा

इधर जयद्रथ भी अब मारा गया था
महारथी कर्ण की भी थी बलि चढ़ी
गुरु द्रोण का भी देख कर बुरा अन्त
जिह्वा की प्यास मेरी और भी बढ़ी

असत्य की विजय का धुन बजा कर
हर क्षण सभी जीत जीत रटते रहे थे
एक-एक कर सारे ही महायोद्धा भी
व्यर्थ में यहाॅं हर दिन ही कटते रहे थे

सत्य के मार्ग पर चल कर पाण्डवों ने
असत्य का पूरा कर दिया था विनाश
इधर अहंकार के नशा में कौरवों ने
स्वयं का ही कर लिया था सत्यानाश

मेरी छाती पर ही चढ़ कर सभी अब
महाभारत की वीर गाथा गा रहा था
युगों तक लगने वाले कलंक की सोच
मैं अपने भार से ही दबा जा रहा था

देख रणभूमि में योद्धाओं का कटा सर
यहाॅं पर बर्बरीक को रहा जाता नहीं
इधर अपने ही कटे सर का बोझ भी
अब उससे स्वयं भी सहा जाता नहीं

चाल बासुदेव श्री कृष्ण की भी थी
एकदम ही सामान्य समझ से परे
बर्बरीक भी अब स्वयं संशय में था
इस युद्ध का निर्णय कोई कैसे करे

Language: Hindi
169 Views
Books from Paras Nath Jha
View all

You may also like these posts

लरजते हुए आंसुं
लरजते हुए आंसुं
कार्तिक नितिन शर्मा
शीर्षक:इक नज़र का सवाल है।
शीर्षक:इक नज़र का सवाल है।
Lekh Raj Chauhan
" वो क़ैद के ज़माने "
Chunnu Lal Gupta
खाएं भारतवर्ष का
खाएं भारतवर्ष का
RAMESH SHARMA
"प्यार की अनुभूति" (Experience of Love):
Dhananjay Kumar
पदयात्रा
पदयात्रा
लक्की सिंह चौहान
SV3888 - Đăng nhập Nhà Cái SV3888 Casino Uy Tín. Nạp rút tiề
SV3888 - Đăng nhập Nhà Cái SV3888 Casino Uy Tín. Nạp rút tiề
SV3888
प्रेम क्या है?
प्रेम क्या है?
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
.
.
Ragini Kumari
आज़ाद थें, आज़ाद हैं,
आज़ाद थें, आज़ाद हैं,
Ahtesham Ahmad
*अपने गुट को अच्छा कहना, बाकी बुरा बताना है (हिंदी गजल)*
*अपने गुट को अच्छा कहना, बाकी बुरा बताना है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
कलयुग में कुरुक्षेत्र लडों को
कलयुग में कुरुक्षेत्र लडों को
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
जलधर
जलधर
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
उदासियां बेवजह लिपटी रहती है मेरी तन्हाइयों से,
उदासियां बेवजह लिपटी रहती है मेरी तन्हाइयों से,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
" कमाल "
Dr. Kishan tandon kranti
जन्मदिन विशेष :
जन्मदिन विशेष :
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
ये विद्यालय हमारा है
ये विद्यालय हमारा है
आर.एस. 'प्रीतम'
4389.*पूर्णिका*
4389.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बालकों के जीवन में पुस्तकों का महत्व
बालकों के जीवन में पुस्तकों का महत्व
Lokesh Sharma
वक्त
वक्त
Shyam Sundar Subramanian
ईसामसीह
ईसामसीह
Mamta Rani
ग़र वो जानना चाहतें तो बताते हम भी,
ग़र वो जानना चाहतें तो बताते हम भी,
ओसमणी साहू 'ओश'
बेटियाँ
बेटियाँ
Shyam Vashishtha 'शाहिद'
মা কালীর গান
মা কালীর গান
Arghyadeep Chakraborty
देख परीक्षा पास में
देख परीक्षा पास में
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
✍🏻 ■ रसमय दोहे...
✍🏻 ■ रसमय दोहे...
*प्रणय*
दुनिया कैसी है मैं अच्छे से जानता हूं
दुनिया कैसी है मैं अच्छे से जानता हूं
Ranjeet kumar patre
जिंदगी
जिंदगी
Dr.Priya Soni Khare
May 3, 2024
May 3, 2024
DR ARUN KUMAR SHASTRI
महामोदकारी छंद (क्रीड़ाचक्र छंद ) (18 वर्ण)
महामोदकारी छंद (क्रीड़ाचक्र छंद ) (18 वर्ण)
Subhash Singhai
Loading...