रिश्ते
रिश्ते उँगलियों पर सवार होकर
खुद को काट रहें है तलवार होकर
हैसियत हिस्साकसी का हिस्सा है
कौन फिरता है असल प्यार लेकर
मददगार बन के मदद मांगता है अदद
मुफलिसी में है तो होगा न कुछ यार होकर
जिनको अता किया था अहले चमन चाँद चौकश ,
वही उखाड़ देतें है शजर-ए – उम्मीद को बयार होकर
अब तो जाना,सुना, समझा न समझे
होता क्या ही है समझदार होकर
वक़्त खुद के लिए खुदाई करने का है सिद्धार्थ,
खुद के लिए खुद खड़े रहो खबरदार होकर
-सिद्धार्थ गोरखपुरी