इशारा
इस तरह भी किया इशारा है
एक पत्थर से उसने मारा है।
अश्क आँखों में फिर उतर आये
फिर हुआ आज दिल बेचारा है।
हम निकाले गये उसी घर से,
नाम जिसपर लिखा हमारा है।
हम इसी शह्र के बाशिंदें हैं
जिसने हमको किया नकारा है।
तुम हमें करते हो पराया क्यों
उम्र हमने यहीं गुजारा है।
इस तरफ़ महफिलें सजी हैं फिर,
उस तरफ़ आह का नज़ारा है।
रूठना कब है मान जाना कब
वक्त का खेल यार सारा है।
#बाग़ी