तमाशा
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
हमने हर रिश्ते को अपना माना
गले लगाकर हमसे गिले कर लिए।
चाॅंद
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
शिक्षा इतनी अद्भुत होती है की,
इंतजार करते रहे हम उनके एक दीदार के लिए ।
कब तक छुपाकर रखोगे मेरे नाम को
उन बादलों पर पांव पसार रहे हैं नन्हे से क़दम,