बाबोसा
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
जब तुम नहीं कुछ माॅंगते हो तो ज़िंदगी बहुत कुछ दे जाती है।
तुम्हारी याद आती है मुझे दिन रात आती है
प्रीत हमारी
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
रिश्ते से बाहर निकले हैं - संदीप ठाकुर
*प्रकटो हे भगवान धरा पर, सज्जन सब तुम्हें बुलाते हैं (राधेश्
मेरी नज्म, मेरी ग़ज़ल, यह शायरी
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दस्त बदरिया (हास्य-विनोद)
मन बहुत चंचल हुआ करता मगर।
मोहमाया के जंजाल में फंसकर रह गया है इंसान