सारी फिज़ाएं छुप सी गई हैं
दिन आज आखिरी है, खत्म होते साल में
थोड़ी मोहब्बत तो उसे भी रही होगी हमसे
24/231. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
आजकल के लोग स्नेह, सौहार्द्र व सद्भाव के बजाय केवल स्वार्थ क
"बैठे हैं महफ़िल में इसी आस में वो,
हिन्दी सूरज नील गगन का
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
आज़ तेरा है कल मेरा हो जायेगा
तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
याद है पास बिठा के कुछ बाते बताई थी तुम्हे
बहुत ही सुंदर सवाल~जवाब 💯
समय लगेगा धैर्य रख।
Author NR Omprakash Athak