विस्मृत से प्रण
///विस्मृत से प्रण///
चिर नूतन यामों से प्रेरित,
प्रिय तेरे हर विस्मृत से प्रण।
यादें अतुलित निधि बनकर,
दीप बाती प्रज्वलित हर क्षण।।
हे नीरव संतत शुचि चिरयामी,
गगन वेध युगवाणी शाश्वत।
अमर सलोने चिर दीपित अंचल,
आत्म वेदना कारी नि: वैश्वत।।
मृदु भावों के उद्भाषित अनुबंधन,
आत्म निलय के सज्जित पोष।
विरह वियोग सी प्रेरित चिर निधि,
अंतर पीड़ा के तुम आशुतोष।।
प्रेरित कर भंगुर जीवन को,
विद्युत के यामों सा आलोकित।
पवन मलय की सुरभि लेकर,
हो जावे मेरे अंतर में स्तंभित।।
चिर यामों के याम उदधि बन,
कर रंजित कण कण तन गात।
हर निशा का कंपित चक्र यह,
लेकर आ जाता नूतन प्रभात।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)