दर्द व्यक्ति को कमजोर नहीं बल्कि मजबूत बनाती है और साथ ही मे
"मौत की सजा पर जीने की चाह"
रंगो की रंगोली जैस दुनिया ,इस दुनिया के रंग में मैं कुछ इस
गजल सी जिन्दगी
Kaushlendra Singh Lodhi Kaushal
दलितों, वंचितों की मुक्ति का आह्वान करती हैं अजय यतीश की कविताएँ/ आनंद प्रवीण
काहे का अभिमान
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
संस्मरण:भगवान स्वरूप सक्सेना "मुसाफिर"
"बैठे हैं महफ़िल में इसी आस में वो,
सुंदर सुंदर कह रहे, सभी यहां पर लोग
जब कभी आपसी बहस के बाद तुम्हें लगता हो,
पुष्प वाटिका में श्री राम का समर्पण
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)