Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 May 2024 · 3 min read

नव निवेदन

मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…
इन भागते पैरों को थोड़ा विराम तो दे दो…

कभी भी कैसे भी एक अदद मदद नही
गिनके तिनके बराबर का सहारा भी नही।
खुद ही बराबरी में आना गवारा भी नही
क्या इंसान ने इंसान कभी सँवारा ही नही?

अब ‘साथी हाथ बढ़ाने’ का पैगाम ही दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

हाथों-हाथ हाथों में कुछ भी न थमा सके
कोई काम दे दो जो नाम-दाम कमा सके।
ये हाथ किसी के आगे फैलाने से पहले
सर कुचलने वाले तलवे सहलाने पहले।

इन बेगुनाह हाथों को कोई काम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

बेगार, बेकार, बेरोजगार तो कहते ही हो
निठल्ला-निकम्मा-नौसिखुवा है भी कहो।
अब ये निरा नालायक कहलाने से पहले
अभ्यर्थी लाभार्थी बना बहलाने से पहले।

हुकूमती कागजों में कोई नाम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

कब से ये काली रातें अंधेरी ही हैं रहती
ये भरी दोपहर भी अमावस सी हैं लगती।
दिये जल ही न पाये बुझने का क्या गम
कर न सके रोशनी खुद जल के भी हम।

घुप्प अंधेरे कोई दीवाली सी शाम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

हमने जिंदगी नाम की थी जमाने के वास्ते
बड़े दोजख में भी हम ढूढ़ने चले थे रास्ते।
हमें क्या पता था शराफत का नही जमाना
बस पैसा ही बन गया औकात का पैमाना।

अब शराफत को कोई नया नाम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

पथरा गई ऑखें पत्थर जब से तुम बने
बेरंग ही रह गए जब से रंगोली से सने।
ये जमाने भर से यूं ही अटकी आस है
ये जिंदगी भर की लगी भटकी प्यास है।

जमजम न सही ये ठुकराए जाम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

इस गुमनाम सी बनी जा रही जिंदगी में
मजबूरी से भी न रसूखदारो की बंदगी में।
जिदंगी की तासीर ही उलझ के रह गई
बेनामी को ही पहचान समझ के रह गई।

दर्जा-ए-खास न सही दर्जा-ए-आम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

इस जमाने में भी ऊँच-नीच की नीची सोच
समता,समानता,बराबरी लाने-करने में संकोच।
कब तक भेद-भाव के भाव यूं चढ़ाये रखोगे
कब कुप्रथाओं को गढ़े मुर्दे से गढ़ाये रखोगे?

जहाँ बराबरी हो सबमें वो निजाम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

आज नफरती जहर हवा में क्यों घुला हुआ
आग उगलने वालो का मुंह क्यों खुला हुआ?
क्यों आज आपस में हम लड़ने को तैयार
क्यों आज जुबां पे गाली हाथों में हथियार?

भाईचारा रखे ऐसी कोई अवाम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

ये गोली-बारूद, बम-धमाकों की बर्बादी से
ये देशों में युद्ध, आतंक और दहशतगर्दी से।
ये होड़ विनाश के घातक शस्त्र-हथियारों से
ये छोटे बच्चों-औरतों,मानवता के हत्यारों से।

इस बेचारी दुनिया को कही आराम तो दे दो…
मंजिल ना सही कोई मुकाम तो दे दो…

जहाँ संपति हो,सुख-शांति और खुशहाली हो
जहाँ नीति,नियम,न्याय,नियंत्रण बलशाली हो।
इस सारे संसार को सुखी-संसार अगर दे दो
हे भारत भाग्य विधाता ! इतना तो वर दे दो।

कहाँ है रामराज्य वाले वही राम तो दे दो…
मंजिल ना सही अब कोई मुकाम तो दे दो…
~०~
मौलिक एवं स्वरचित : कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या-२१: मई २०२४.© जीवनसवारो.

Language: Hindi
149 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
View all

You may also like these posts

मर्दाना हँसी ताक़तवर हँसी *मुसाफिर बैठा
मर्दाना हँसी ताक़तवर हँसी *मुसाफिर बैठा
Dr MusafiR BaithA
ठोकर
ठोकर
Shekhar Chandra Mitra
*खिलवाओ दावत अगर, छप्पन भोगों संग (हास्य कुंडलिया)*
*खिलवाओ दावत अगर, छप्पन भोगों संग (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
अवतार
अवतार
Shweta Soni
करगिल के वीर
करगिल के वीर
Shaily
*ये आती और जाती सांसें*
*ये आती और जाती सांसें*
sudhir kumar
वेलेंटाइन डे एक व्यवसाय है जिस दिन होटल और बॉटल( शराब) नशा औ
वेलेंटाइन डे एक व्यवसाय है जिस दिन होटल और बॉटल( शराब) नशा औ
Rj Anand Prajapati
तलाशता हूँ उस
तलाशता हूँ उस "प्रणय यात्रा" के निशाँ
Atul "Krishn"
कई बार मन करता है रोया जाए... खूब रोया जाए... किसी ऐसे के सा
कई बार मन करता है रोया जाए... खूब रोया जाए... किसी ऐसे के सा
पूर्वार्थ देव
बेटी का हक़
बेटी का हक़
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
माहिया - डी के निवातिया
माहिया - डी के निवातिया
डी. के. निवातिया
समंदर है मेरे भीतर मगर आंख से नहींबहता।।
समंदर है मेरे भीतर मगर आंख से नहींबहता।।
अश्विनी (विप्र)
बदलती हवाओं का स्पर्श पाकर कहीं विकराल ना हो जाए।
बदलती हवाओं का स्पर्श पाकर कहीं विकराल ना हो जाए।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
" मगर "
Dr. Kishan tandon kranti
मुफ़लिसों को बांटिए खुशियां खुशी से।
मुफ़लिसों को बांटिए खुशियां खुशी से।
सत्य कुमार प्रेमी
संसाधन का दोहन
संसाधन का दोहन
Buddha Prakash
मेरी कलम से...
मेरी कलम से...
Anand Kumar
पेड़ सी सादगी दे दो और झुकने का हुनर डालियों से।
पेड़ सी सादगी दे दो और झुकने का हुनर डालियों से।
Madhu Gupta "अपराजिता"
बैरागी
बैरागी
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
फिलहाल अंधभक्त धीरे धीरे अपनी संस्कृति ख़ो रहे है
फिलहाल अंधभक्त धीरे धीरे अपनी संस्कृति ख़ो रहे है
शेखर सिंह
पिता आख़िर पिता है
पिता आख़िर पिता है
Dr. Rajeev Jain
वो नेमतों की अदाबत है ज़माने की गुलाम है ।
वो नेमतों की अदाबत है ज़माने की गुलाम है ।
Phool gufran
बसंत
बसंत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
..
..
*प्रणय प्रभात*
बातों बातों में!
बातों बातों में!
Jaikrishan Uniyal
काश की हमने तुझसे, ये दिल लगाया न होता।
काश की हमने तुझसे, ये दिल लगाया न होता।
श्याम सांवरा
इतिहास जानता था कि अब वो जाने वाली है
इतिहास जानता था कि अब वो जाने वाली है
Jitendra kumar
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
Neelofar Khan
Between the two worlds - 8,000 B.C
Between the two worlds - 8,000 B.C
Shashi Mahajan
जीवन रश्मि
जीवन रश्मि
Neha
Loading...