औपचारिक हूं, वास्तविकता नहीं हूं
छिप गई वो आज देखो चाँद की है चाँदनी
*कागज़ कश्ती और बारिश का पानी*
कौन कहता है कि नदी सागर में
जीवनसाथी तुम ही हो मेरे, कोई और -नहीं।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
*साड़ी का पल्लू धरे, चली लजाती सास (कुंडलिया)*
आंखे सुनने लग गई, लगे देखने कान ।
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मुझे भी अब उनकी फ़िक्र रहती है,
उम्मीद खुद से करेंगे तो ये
मुझे लगा अब दिन लदने लगे है जब दिवाली की सफाई में मां बैट और