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25 Jul 2024 · 1 min read

डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक

डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक

झरनों सा जीवन है मेरा
किस जग आया किस जग जाणा ।

देस पराया लोक पराए
वेख वेख रब मेरा मुसकाया ।

दुनिया दारी बहुत ही माड़ी ।
दुनिया दारी बहुत ही माड़ी ।

किन्ने अगाड़ी किन्ने पिछाड़ी ।

झरनों सा जीवन है मेरा
किस जग आया किस जग जाणा ।

रब नु चाहो रब नु ही ध्याओ ।
रब नु चाहो रब नु ही ध्याओ ।

होर किसे नु तुसी भुल जाओ ।

जे न मननी आ गल मेरी ।
आ आ ओ ओ
जे न मननी आ गल मेरी ।

फेर ते अश्क बहान दे जाओ ।

जे न मननी आ गल मेरी ।
फेर ते अश्क बहान दे जाओ ।

झरनों सा जीवन है मेरा
किस जग आया किस जग जाणा ।

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