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26 Jun 2024 · 1 min read

भोर का दृश्य

गीतिका
~~~
निखरता हुआ भोर का दृश्य सुन्दर।
किरण स्वर्णमय रह न पाती सिमटकर।

बहुत चाह आगोश में आज ले लूं।
रुके बिन उसे देख लूं आज जी भर।

पुकारूं किसे मैं बहुत दूर हो तुम।
मिलेगा कभी इस तरह फिर न अवसर।

अहर्निश यही सिलसिला जब चला है।
खिली भोर में है सताता कहां डर।

बहुत शांत तट सिंधु का खूबसूरत।
हुए जा रहे भाव मन के उजागर।
~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य,२६ /०६/२०२४

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