*कड़वे भोजन को खाकर भी, जो निज मुस्कान न खोएगा (राधेश्यामी छ
कुछ कहने के लिए कुछ होना और कुछ कहना पड़ना, इन दोनों में बहु
*The malafide prejudiced mind*
अब कौन-कौन परखेगा यूं हमें,
मुझे फुरसत से मिलना है तुमसे…
बाल कविता: नानी की बिल्ली
"आजकल औरतों का जो पहनावा है ll
माँ वीणा वरदायिनी, बनकर चंचल भोर ।
न्योता ठुकराने से पहले यदि थोड़ा ध्यान दिया होता।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
दुख निवारण ब्रह्म सरोवर और हम
कुछ दूर और चली होती मेरे साथ
रोना उचित नहीं रे, संशय रखे हृदय में
आप थोड़ा-थोड़ा ही काम करें...
नस-नस में तू है तुझको भुलाएँ भी किस तरह