रोना उचित नहीं रे, संशय रखे हृदय में

रोना उचित नहीं रे, संशय रखे हृदय में
मंज़िल उसे मिला है, जो स्पष्ट हो उदय में
माना सभी डगर है, मुश्किल लिए जहाँ में
पर रोक कब सके वो,जो पग बढ़े प्रणय में।।
_संजय निराला
रोना उचित नहीं रे, संशय रखे हृदय में
मंज़िल उसे मिला है, जो स्पष्ट हो उदय में
माना सभी डगर है, मुश्किल लिए जहाँ में
पर रोक कब सके वो,जो पग बढ़े प्रणय में।।
_संजय निराला