प्रह्लाद की टेर
प्रह्लाद की टेर
भय का नहीं था लेश मन में,
विष्णु बसे थे कण-कण में।
हिरण्यकश्यप का क्रोध भारी,
पर प्रह्लाद की भक्ति थी प्यारी।
अग्नि में जलाना चाहा जब,
विष्णु ने ही बचाया तब।
विष का प्याला भी दिया जब,
अमृत बन गया वो तब।
हाथी से कुचलवाना चाहा जब,
विष्णु ने ही बचाया तब।
पर्वत से गिराना चाहा जब,
विष्णु ने ही बचाया तब।
हर बार प्रह्लाद की भक्ति जीती,
हिरण्यकश्यप की हार हुई थी।
भक्तों के रक्षक हैं भगवान,
प्रह्लाद ने दिखाया यह प्रमाण।
आलोक पांडेय
गरोठ, मंदसौर, मध्यप्रदेश।