Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Jul 2024 · 4 min read

उगें हरे संवाद, वर्तमान परिदृश्य पर समग्र चिंतन करता दोहा संग्रह।

उगें हरे संवाद, वर्तमान परिदृश्य पर समग्र चिंतन करता दोहा संग्रह।
———————————————————

योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ यद्यपि नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं, लेकिन यह भी सच है कि वह दोहों के भी विशेषज्ञ हैं। फेसबुक पर प्रतिदिन उनका एक दोहा पढ़ने को मिलता है। उनके दोहों में भी नवगीत की छाप मिलती है। उनके दोहों के बिंब नवगीत की आधारशिला सरीखे प्रतीत होते हैं।
उनका ही एक दोहा देखते हैं:
मिट जाएं मन के सभी, मनमुटाव अवसाद।
चुप के ऊसर में अगर, उगें हरे संवाद।।
यह दोहा उनके सद्य प्रकाशित दोहा संग्रह ‘उगें हरे संवाद’ का परिचयात्मक दोहा है। यह दोहा संग्रह अभी कुछ दिन पूर्व ही एक कार्यक्रम में उन्होंने मुझे बड़े अपनत्व के साथ भेंट किया था, साथ ही आग्रह भी किया कि पुस्तक पर अपना अभिमत व्यक्त करूॅं।
वस्तुतः दोहा चार चरण और चौबीस मात्राओं का एक छोटा सा छंद है, लेकिन इसकी विशेषता यह है कि इसमें गूढ़ से गूढ़तम बात सूक्ष्म रूप में प्रभावशाली तरीके से व्यक्त की जा सकती है।
दोहे की विशेषता के संदर्भ में कविवर बिहारी की सतसई के संदर्भ में रचित इस दोहे से प्रमाणित हो जाती है:
सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगें, घाव करें गम्भीर।।
मैंने उनके दोहा संग्रह में निहित सभी दोहे बड़े ध्यान से दो- दो, तीन – तीन बार पढ़ें हैं और मैं यह प्रामाणिकता के साथ कह सकता हूॅं कि पुस्तक में प्रकाशित सभी दोहे वास्तव में नाविक के तीर ही हैं।
एक भी दोहा ऐसा नहीं है, जिसमें कोई संदेश न छिपा हो।
उनकी भाषा आम बातचीत की भाषा है, लेकिन जैसा मैंने पूर्व में बताया कि उनके दोहों में जो बिंब हैं, उन पर नवगीत की छाप मिलती है और दोहों की शब्दावली व तुकांत में जो प्रयोग उन्होंने किये हैं वह अन्यत्र देखने को नहीं मिलते।
एक उदाहरण देखिए:
यात्राएं अपनत्व की, कैसे हों आश्वस्त।
विश्वासों के मार्ग जब, हैं सारे क्षतिग्रस्त।।
अपनत्व की यात्रा, विश्वासों के मार्ग , इन बिंबों से ही तो नवगीत अंकुरित होता है।
उनके दोहों में जीवन की, समाज की, विभिन्न परिस्थितियों व विषमताओं पर एक जागरूक चिंता दिखाई देती है, साथ ही जीवन दर्शन, साहित्य सृजन की गुणवत्ता में क्षरण, अध्ययन में रुचि की कमी, मोबाइल संस्कृति से उपजी संवादहीनता, आभासी दुनिया में संबंधों में संवेदनशीलता का अभाव, सामाजिक विसंगतियां, जाति भेद, वर्ग भेद, ऊॅंच नीच आदि का चिंतन मिलता है, जो स्पष्ट प्रमाण है कि वह एक जागरूक साहित्यकार हैं, ऐसा साहित्यकार अपने सामाजिक परिवेश व आसपास के परिदृश्य पर लेखनी चलाए बिना नहीं रह सकता। उन्होंने समाज को आईना दिखाने का दायित्व बखूबी निभाया है।
जीवन के नश्वर होने के संदर्भ में उनका यह दोहा स्पष्ट संदेश देता है कि मृत्यु सभी की होनी है, साथ में सीख भी है जब जीवन नश्वर है तो घमंड करने का क्या औचित्य है:
उसका निश्चित अंत है, जिसका है आरम्भ।
पगले फिर क्यों पालता, भीतर इतना दम्भ।।
सामाजिक विषमता पर प्रहार करने हुए उनकी कलम इस प्रकार चली है:
हुआ जन्म या कर्म से, तू ऊंचा मैं नीच।
खींचतान चलती रही, सही ग़लत के बीच।।
पत्र पत्रिकाएं पुस्तकों के अध्ययन के प्रति समाज में व्याप्त अरुचि को उन्होंने इस दोहे में बखूबी दर्शाया है-
हममें खुशबू ज्ञान की, भीतर छिपी अपार।
अलमारी की पुस्तकें, कहती हैं हर बार।।
साथ ही सृजन को भाषा के बंधन से परे बताते हुए वह कहते हैं कि सार्थक सृजन किसी भी भाषा में किया जा सकता है:
भाषा की हद में नहीं, बॅंध सकता साहित्य।
ज्यों हर सीमा से परे, दें प्रकाश आदित्य।।
वर्तमान समाज में नैतिक मूल्यों की कमी व संस्कृति के क्षरण के प्रति अपनी व्यथा इस प्रकार व्यक्त की है:
ऐसे कटु परिदृश्य का, कभी न था अनुमान।
सूली पर आदर्श हैं, संस्कृति लहूलुहान।।
साथ ही मोबाइल संस्कृति पर भी इस प्रकार प्रहार किया है-
दुनियादारी भूलकर, बस अपने में व्यस्त।
बच्चे क्या बूढ़े हुए, मोबाइल में मस्त।।
आभासी संसार की मित्रता की वास्तविकता पर निम्न दोहा सटीक बैठता है:
साथ नहीं है एक भी, पर हैं मित्र हजार।
आभासी संसार की महिमा अपरम्पार।।
वर्तमान सोशल मीडिया के दौर में हर व्यक्ति कवि बन गया है, जिनमें न छंद हैं न भाव अभिव्यक्ति की कला है, बस जोड़ तोड़ के बोल हैं।
इस परिस्थिति पर वह लिखते हैं-
कविता तेरे गॉंव में, शब्द मिले स्वच्छंद।
खोजा किन्तु न मिल सके, अलंकार रस छंद।।
या
लिखी जा रही आजकल, कविता तो भरपूर।
फिर क्यों होती जा रही, जनमानस से दूर।।
वर्तमान परिदृश्य में राजनीति और राजनेताओं के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार पर चोट करते हुए वह लिखते हैं:
खुरच खुरच कर खा गए, सारा हिन्दुस्तान।
फिर भी कहते गर्व से, मेरा देश महान।।
राजनेताओं व राजनीतिक दलों की अनैतिकता और स्वार्थपरता पर निम्न दोहा और तीव्र प्रहार करता है:
किसको चिन्ता लोक के, सॅंवरें जीवन मंत्र।
सारे ही दल रच रहे, सत्ता का षड्यंत्र।।
यहॉं तो केवल कुछ दोहे ही उद्धृत किये जा सकते हैं। वस्तुतः तो पूरी पुस्तक में सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं और अपने में कोई न कोई संदेश समेटे हैं।
समग्रता में देखा जाए तो यह दोहा संग्रह वर्तमान सामाजिक परिदृश्य की संपूर्ण विवेचना करता है, कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं।
जाड़ा, गर्मी, बरसात, कोहरा, बसंत, चुनाव, ऊॅंच नीच, मर्यादा, अहंकार, मान अपमान, सभी परिस्थितियों पर उनकी कलम बखूबी चली है।
कुल मिलाकर व्योम जी का यह दोहा संग्रह सामाजिक, व्यावहारिक व मानवीय परिस्थितियों का संपूर्ण चित्रण करता है जो पठनीय भी है और संदेशपरक भी है।
आशा है व्योम जी अपनी सृजन यात्रा में नवगीत के साथ साथ दोहे भी निरंतर लिखते रहेंगे और निकट भविष्य में हमें उनके और दोहा संग्रह पढ़ने को मिलेंगे।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
T- 5 / 1103,
आकाश रेजीडेंसी, आदर्श कालोनी,
कांठ रोड,
मुरादाबाद। उ.प्र.

106 Views

You may also like these posts

रामलला ! अभिनंदन है
रामलला ! अभिनंदन है
Ghanshyam Poddar
इंतज़ार के दिन लम्बे हैं मगर
इंतज़ार के दिन लम्बे हैं मगर
Chitra Bisht
ज़िंदगी तेरा
ज़िंदगी तेरा
Dr fauzia Naseem shad
ग़ज़ल : कई क़िस्से अधूरे रह गए अपनी कहानी में
ग़ज़ल : कई क़िस्से अधूरे रह गए अपनी कहानी में
Nakul Kumar
"कैसा जमाना आया "
Dr. Kishan tandon kranti
प्रवाह
प्रवाह
Lovi Mishra
**वो पागल  दीवाना हो गया**
**वो पागल दीवाना हो गया**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Sentenced To A World Without You For All Time.
Sentenced To A World Without You For All Time.
Manisha Manjari
*बताओं जरा (मुक्तक)*
*बताओं जरा (मुक्तक)*
Rituraj shivem verma
बाट तुम्हारी जोहती, कबसे मैं बेचैन।
बाट तुम्हारी जोहती, कबसे मैं बेचैन।
डॉ.सीमा अग्रवाल
शुहरत को पा गया वो, नम हो के जो चला है,
शुहरत को पा गया वो, नम हो के जो चला है,
Neelofar Khan
नारी का क्रोध
नारी का क्रोध
लक्ष्मी सिंह
" यादों की शमा"
Pushpraj Anant
इम्तिहान
इम्तिहान
AJAY AMITABH SUMAN
दुनिया बड़ी, बेदर्द है, यह लिख गई, कलम।।
दुनिया बड़ी, बेदर्द है, यह लिख गई, कलम।।
Kaushlendra Singh Lodhi Kaushal
शून्य
शून्य
उमेश बैरवा
प्रकृति की गोद
प्रकृति की गोद
उमा झा
मेघ, वर्षा और हरियाली
मेघ, वर्षा और हरियाली
Ritu Asooja
अच्छा लिखने की तमन्ना है
अच्छा लिखने की तमन्ना है
Sonam Puneet Dubey
शायरी
शायरी
गुमनाम 'बाबा'
दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
लाइब्रेरी की दीवारों में गूंजता जुनून,सपनों की उड़ान का है य
लाइब्रेरी की दीवारों में गूंजता जुनून,सपनों की उड़ान का है य
पूर्वार्थ
SP53 दौर गजब का
SP53 दौर गजब का
Manoj Shrivastava
2600.पूर्णिका
2600.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
मेला दिलों ❤️ का
मेला दिलों ❤️ का
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
अच्छी नहीं
अच्छी नहीं
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
रोबोट युगीन पीढ़ी
रोबोट युगीन पीढ़ी
SURYA PRAKASH SHARMA
சூழ்நிலை சிந்தனை
சூழ்நிலை சிந்தனை
Shyam Sundar Subramanian
प्रीत
प्रीत
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
मैंने सोचा भी कहां था
मैंने सोचा भी कहां था
हिमांशु Kulshrestha
Loading...