***नेह अधिकार***

प्रेम तो शाश्वत आत्मबंधन है
कभी समर्पण मौन मुखर सा
इसे अनंत प्रेम प्रतिकार दो
मेरे नेह पर अधिकार दो
चलती संग बनके अनुगामिनी
कर्ण प्रिय राग सी रंग रागिनी
इक नवीन सा आज संसार दो
मेरे नेह पर अधिकार दो
रैना बीती, सदियां बीती
दिल में इक टीस सताये
अब तो अनुराग उपहार दो
मेरे नेह पर अधिकार दो
प्रेम पल्लव की अंकुरित शाखें
कभी पुकारे अनाम दिलासें
प्रीत का बंधन स्वीकार दो
मेरे नेह पर अधिकार दो
स्नेह का अटूट धागा सा
प्रेम,विश्वास संग ही बाँध लिया
रंगहीन, सूना प्रेमनगर भी
करीने से आज यूं सज उठा
लघु सा संसार बसा हिय में
स्वप्निल नयन आस लगाये
सुंदर,स्वप्न अब साकार दो
मेरे नेह पर अधिकार दो
नभ की लाली नयन निहारें
अंबर के आँचल सैकड़ों सितारें
कोरी चुनर इक सँवार दो
मेरे नेह को अधिकार दो
सजाकर आरती की थाली
गूँज रही शिवालय की गली
इक बार हाथ जोड़ दरकार दो
मेरे नेह पर अधिकार दो
सूने सदन खग का डेरा
वृक्ष संग उपवन घनेरा
हर सुमन सहेज निखार दो
मेरे नेह पर अधिकार दो।
✍🏻 ” कविता चौहान ”
स्वरचित एवं मौलिक