Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Jun 2024 · 3 min read

वो कौन थी जो बारिश में भींग रही थी

रात्रि का समय था
मुझे नींद नहीं आ रही थी
मैं बालकनी में बाहर खड़ी थी
बारिश देख रही थी

मैं तो रात भर जागती हूं
लिखने में व्यस्त रहती हूं
घर की व्यस्तता से मुक्त
खुद में ही खोई रहती हूं

देर तक मैं वहीं खड़ी थी
वर्षा को देखती रही थी
बारिश की बूंदे तेज़ हवा
के साथ मुझे भिंगा रही थी

तभी मेरी निगाहें मेरे सामने वाले
घर की छत पर आ टिकीं थी
वहां एक स्त्री थी जो की छत पर खड़ी थी
मेरी पड़ोसन थी नई नई आई थी

यहां आय कुछ ही दिन हुए थे
मेरी उसके साथ बात अभी तक हुई नहीं थी
अपरिचित थी अनजानी थी लेकिन कुछ जानी पहचानी थी
क्योंकि वो एक नारी थी, जननी थी गृहणी थी, नौकरीपेशा थी
मैं उसे ही देखती रही थी

वो भिंग रही थी बारिश में
पहले तो वो यहां से वहां घूम रही थी
मानो जैसे वो किसी को देख रही हो
लेकिन वो वहीं तेज़ बारिश में बैठ गई

यह बात मेरे लिए अजीब थी
इसीलिए मुझे शंका हुई
क्योंकि मैं भी एक स्त्री हूं
कोई भी महिला यदि गंदे छत में, वो भी रात में,
भरी बारिश में ऐसे भीगना
यानी समस्या का विकट होना
यानी कि दुखों का सैलाब आना,
मुझे अंदेशा हो चुका था अब तक हां लेकिन अधिक नहीं

वो घुटनों के बल बैठ गई
चीख चीख कर रोने लगी
वो वहीं बैठी घंटो रोती रही
मैं वहीं रुकी थमी, सहमी सी मानो
मैं उसके दर्द में मैं डूबती गई
बिना रोए ही मेरी आंखों से आंसुओं की धार
मेरे होंठो तक आ रही थी
आंसुओं की धारा रोकना
मेरे लिए आसान नहीं था

पहले तो मुझे ख्याल आया कि
मैं जाऊं और बात करूं
लेकिन मेरे क़दम अपने आप रुक गए
मुझे भय था कहीं वो यहां से चली न जाए
रोने से शायद उसका दर्द थोड़ा कम हो जाय
मैंने अनजाने में ही उसका दुख मेरे भीतर उतार लिया

मेरे भीतर अब अनगिनत सवालों ने पहरा जमा लिया था
क्या हुआ था जो वो ऐसे रो रही थी
क्या दुःख था जिसे वो सबसे छुपा रही थी
क्या झगड़ा हुआ था या कोई समस्या उत्पन्न हुई थी

क्यों वो ऐसे रो रही थी
जीवन से निराश हो रही थी
क्या जीवन में सम्मान नहीं था
या जीवन साथी का साथ नहीं था

न जानें ऐसे कितने ही अनगिनत सवाल अब मेरे मन में आ रहे थे
बस अब और मुझसे देखा नहीं गया और मेंने उसे रोकने का निर्णय किया
लेकिन तब तक वो जा चुकी थी
मैं उसे बुलाने के लिए आवाज़ दे रही थी सुनो………
लेकिन वर्षा तब तक अधिक तेज़ हो गई थी
वर्षा के साथ आंधी भी चल रही थी
मेरी आवाज दब कर रह गई थी

माहौल भयावह हो चुका था
स्ट्रीट लाइट चालू बंद चालू हो रही थी
बिजली कड़क रही थी
उस माहौल से मैं अब डर थी
और अब मैं भी भीतर जा रही थी

मुझे एक ही ख्याल आया कि इस दुनियां में
हर इंसान दुःखी है व्यथित है
कोई अपने सुख और दुःख बांट नहीं सकता है
क्योंकि सुख और दुःख दोनों में ही
प्रतियोगिता चल रही है
किसी से कोई दुःख बांटो तो वो अपने दस दुख गिना देंगे
किसी से एक खुशियां साझा किया तो वो अपनी खुशियां बता देंगे

आज सब बोलना चाहते हैं
लेकिन सुनना कोई नहीं चाहता
सबके दर्द हैं लेकिन कोई बांटना नहीं चाहता
_ सोनम पुनीत दुबे

3 Likes · 5 Comments · 154 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
View all

You may also like these posts

*यात्रा में सामान का, होता सारा खेल (कुंडलिया)*
*यात्रा में सामान का, होता सारा खेल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
खर्राटा
खर्राटा
Santosh kumar Miri
कहानी मंत्र कि समीक्षा
कहानी मंत्र कि समीक्षा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गुजरी महल (कहानी)
गुजरी महल (कहानी)
Indu Singh
एक किताब बन गयी
एक किताब बन गयी
प्रदीप कुमार गुप्ता
गांव गलियां मुस्कुराएं,
गांव गलियां मुस्कुराएं,
TAMANNA BILASPURI
जो कहना है,मुंह पर कह लो
जो कहना है,मुंह पर कह लो
दीपक झा रुद्रा
आओ सजन प्यारे
आओ सजन प्यारे
Pratibha Pandey
“चिट्ठी ना कोई संदेश”
“चिट्ठी ना कोई संदेश”
DrLakshman Jha Parimal
"मकर संक्रांति की बधाई 2025"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
राम अवतार
राम अवतार
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
"बरखा रानी..!"
Prabhudayal Raniwal
"कितनी नादान है दिल"
राकेश चौरसिया
pyar ki zindagi
pyar ki zindagi
Syed sufiyan
बूढ़ी मां
बूढ़ी मां
Sûrëkhâ
দৃশ্যপট
দৃশ্যপট
Sakhawat Jisan
प्यार : व्यापार या इबादत
प्यार : व्यापार या इबादत
ओनिका सेतिया 'अनु '
बहके जो कोई तो संभाल लेना
बहके जो कोई तो संभाल लेना
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
द्रौपदी ने भी रखा था ‘करवा चौथ’ का व्रत
द्रौपदी ने भी रखा था ‘करवा चौथ’ का व्रत
कवि रमेशराज
शब्दों की चाहत है हृदय में उनके,
शब्दों की चाहत है हृदय में उनके,
श्याम सांवरा
कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को
कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को
Aadarsh Dubey
!..........!
!..........!
शेखर सिंह
इन्तिज़ार,
इन्तिज़ार,
हिमांशु Kulshrestha
#आज_का_क़ता (मुक्तक)
#आज_का_क़ता (मुक्तक)
*प्रणय प्रभात*
Man is ambitious(Poem)
Man is ambitious(Poem)
SUNDER LAL PGT ENGLISH
कौन मनाएगा तुमको
कौन मनाएगा तुमको
Shekhar Chandra Mitra
3843.💐 *पूर्णिका* 💐
3843.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
बोल मजीरा
बोल मजीरा
कुमार अविनाश 'केसर'
अच्छी थी  कितनी वो ख़ामोशियां भी
अच्छी थी कितनी वो ख़ामोशियां भी
Dr fauzia Naseem shad
Loading...