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16 Jan 2024 · 2 min read

कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को

निहित स्वार्थ की सिद्धि हेतु रटते हैं सब नाम को
लेकिन कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को

निरा मूर्ख उलझे हैं केवल राजनीति के फेरे में
और अधर्मी क़ैद कर रहे अपने अपने डेरे में
शहरों शहरों गलियों गलियों राम तो बस इक झांकी हैं
इनमें छुपे हुए रावण के अब भी दस सर बाक़ी हैं
घर घर पापी तने खड़े हैं फिर भीषण संग्राम को……

निहित स्वार्थ की सिद्धि हेतु रटते हैं सब नाम को
लेकिन कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को

आत्म परीक्षा कैसे होगी जब मन पर अवरोध नहीं
राम राम करने वालों को धैर्य धर्म का बोध नहीं
आंदोलित चरित्र से पोषित संसारी अभिलाषा है
अंदर और तमाशा है और बाहर और तमाशा है
काम के प्यासे मन में कैसे समा सकेंगे राम को…

निहित स्वार्थ की सिद्धि हेतु रटते हैं सब नाम को
लेकिन कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को

जग में कोई प्यासा है तो समझो राम भी प्यासे हैं
जग में कोई भूखा है तो समझो राम भी भूखे हैं
जग में कोई रूठा है तो समझो राम भी रूठे हैं
और कोई घर टूटा है तो समझो राम भी टूटे हैं
लेकिन कहाँ समझ पाए हम धरती के आराम को…

निहित स्वार्थ की सिद्धि हेतु रटते हैं सब नाम को
लेकिन कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को

राम करें सद्बुद्धि आये हर कोई खुशहाल रहे
धर्म भले कोई हो किसी का अब न कोई बदहाल रहे
समता और न्याय नीति समृद्ध समाज का दर्पण हो
नाम नहीं अब राम के प्रति अपना पूर्ण समर्पण हो
सुबह का हर भूला अब वापिस लौट आये घर शाम को….

निहित स्वार्थ की सिद्धि हेतु रटते हैं सब नाम को
लेकिन कोई समझ नहीं पाया है मेरे राम को
~Aadarsh Dubey

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