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28 May 2024 · 1 min read

वसुंधरा की पीड़ा हरिए —

वसुन्धरा की पीड़ा हरिए —
काव्य गीत सृजन–

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दग्ध हुआ धरती का आँचल, वसुंधरा की पीड़ा हरिए।
सावधान हो जाओ मानव,जननी को मत मैला करिए।
क्रंदन करता है अन्तर्मन, भू दोहन इतना मत करिए।
सावधान हो जाओ मानव,जननी को मत मैला करिए।

भारत की भू अवतारी है,संतों का अमिट वरदान है।
डटे रहते कर्तव्य पथ पर, काम का उनके यशगान है।
आम गिलोय आवँला तुलसी,औषध वृक्ष का रोपण करिए।
सावधान हो जाओ मानव,जननी को मत मैला करिए।

अन्न धन हीरे मोती सभी, अचला माता से मिलते हैं।
वृक्ष सदा से प्राण धरणी के, पर्यावरण संतुलन करते हैं।
हरितमा से हरी-भरी रहे, वृक्षों का वर्धन,सिंचन करिए।
सावधान हो जाओ मानव,जननी को मत मैला करिए।

धानी चूनर ओढ़े धरती, फूलों से सज मुस्काती है।
धरित्री के दोहन से कितने,संकट बीमारी आती है।
अवनि मात क्यों रहती प्यासी,ताल तड़ाग,तलैया भरिए।
सावधान हो जाओ मानव, जननी को मत मैला करिए।

✍️ सीमा गर्ग मंजरी
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
3 Likes · 150 Views
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