है अभी भी वक़्त प्यारे, मैं भी सोचूंँ तू भी सोच
अम्माँ मेरी संसृति - क्षितिज हमारे बाबूजी
तुम आये तो हमें इल्म रोशनी का हुआ
भुला बैठे हैं अब ,तक़दीर के ज़ालिम थपेड़ों को,
अच्छा सोचना बेहतरीन सोचना और सबसे बेहतरीन करना |
त्यागो अहं को आनंद मिलेगा, दिव्य ज्ञान का दीप जलेगा,
राम वन गमन हो गया
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
हमें जीवन में अपने अनुभव से जानना होगा, हमारे जीवन का अनुभव
मैंने रात को जागकर देखा है
पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद
बच्चे ही मां बाप की दुनियां होते हैं।
पेड़ चुपचाप आँसू बहाते रहे
कभी फुरसत मिले तो पिण्डवाड़ा तुम आवो
रहता है जिसका जैसा व्यवहार,