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18 Dec 2023 · 1 min read

*जीवन में हँसते-हँसते चले गए*

जीवन में हँसते-हँसते चले गए
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जीवन मे हँसते हँसते चले गए,
मंजिल पर बढ़ते बढ़ते चले गए।

औरों की नफ़रत में थे रचे बसे,
खुद से ही बचते-बचते चले गए।

दुख का साये भी छूटे हुए मिले,
गम को वो हरते-हरते चले गए।

आँखों से आँसू बहते रहे सदा,
नजरों से ढलते-ढलते चले गए।

यूँ तो हम भी थे पूरे भरे हुए,
मौके भी मिलते-मिलते चले गए।

मनसीरत दिल में थे खूब हौसलें,
पर उन से डरते – डरते चले गए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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