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27 May 2024 · 1 min read

हम हंसना भूल गए हैं (कविता)

हम हंसना भूल गए हैं (कविता)

अपने आप में इतना उलझ गए हैं कि
हम हंसना भूल गए हैं।

दूसरों की खुशी देखकर,
हम अपने सुख को भूल गए हैं। इसलिए….

दुसरों की बुराई देखने में,
हम अपनी बुराई भूल गए हैं।
इसलिए….

मोबाईल में समय गवांकर,
हम अपनों से दूर हो गए हैं।
इसलिए….

सुख कि खोज में गाँवों को छोड़,
हम शहर आ गए हैं।
इसलिए….

गाँव, नगर सब कुछ छुट गया,
अब अकेले रहा गए हैं।
इसलिए….

अपने आप में इतना उलझ गए हैं,
कि हम हंसना भूल गए हैं।

जय हिन्द

Language: Hindi
144 Views
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