हां मैं ईश्वर हूँ ( मातृ दिवस )
हां मैं ईश्वर हूँ (मातृ दिवस)
मैं अरावली पहाड़ियों से मकराना जगह से जा रहा था ।
वहाँ आवाज़ गुंज रही थी ।
लय-ताल से मधुर – गुंज में पत्थर को तराशते हाथ ।
मैं ने कहाँ ?
ये आप किसकी मूर्ती बना रहें ।
मैं रोज इस मार्ग से जा रहा हूँ , और
आपको तन्मयता – भक्तिमय से कार्य करते देख रहा हूँ ।
मानो तराशने वाले हाथ ही ईश्वर हो ,
हां मैं ईश्वर हूँ ,
मैं माँ को आकार – प्रकार प्राण दे रहा हूँ।
मुझे जिज्ञासा हुयी , कैसे आकार-प्रकार प्राण देते हो ?
जिसके कोख से मानवता पुरुषार्थ जन्में
जिसके गोद में सृष्टि समा जाए
जिसके स्पर्श मात्र से बड़ी से बड़ी चोट को सहलाकर ठीक कर दे
जिसके दो हाथ , सबको दिखे , पर हो असंख्य , तांकि जीवन संवारने का
उसका कर्त्तव्य , बिन बाधा पूरा हो सके
जिसके मन में भी
आँखे हो जिससे वह
दूर बैठी बच्चों – परिवार को देख सके
जो बीमार होने पर भी
दस-बारह लोगों वाले
परिवार के लिऐ
हंसकर खुशी से भोजन बना दे
नाजुक हो ,
पर हर मुश्किल को
हरा सकने का दमखम रखें
जिसके आंचल तले
सृष्टि को सुरक्षा मिले
जिसके नेत्रों में
अपने बच्चों के लिए
भावनाओं से भाव भरा जल हो
उनके शत्रुओं के लिऐ ज्वाला
जिसके दर्शन मात्र से
मानवता कृत – कृत हो
मैं उसे आकार-प्रकार प्राण गढ़ रहा हूँ ,
जीसे मानव ,
ठेस तो बहुत पहूंचाएगा ,
पर उसका हाथ
न आशीर्वाद देने से रुकेगा ,
और न अंतकरण दुआ मांगने से
मैं अपना प्रतिरुप आकार-प्रकार प्राण गढ़ रहा हूँ ।
माँ को नमन – ईश्वर प्रतिरुप को नमन ।
000
– राजू गजभिये