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12 May 2024 · 1 min read

मां के रूप

जननी, जन्म-भूमि, जगत – जननी,
सभी कहलाती हैं हमारी – ‘मां’।

जनती है, परवरिश करती हैं,
अच्छे संस्कार भरती हैं – ‘मां ‘

माटी का चंदन लगा लो
वसुंधरा है हमारी धरती – ‘मां’

दानव से मानव को बचाती हैं
कल्याणी है हमारी देवी- ‘मां’

किस समय क्या चाहिए?
सब जानती है अपनी- ‘ मां’

माखन नहीं खाया है तुने
मान लेती है ममतामयी- ‘ मां’

दूर रहो या रहो पास
दुआ करती है हरदम – ‘ मां’

मना लो मन से/ दिल से
मनोकामनाएं पूरी करती है- ‘मां’

उठा लो गैरों को/ दिनों को,
तुम्हें थाम लेती है – ‘मां’

उठा लो हाथ अपना ऊपर
डालियां झुका देती है- ‘ मां’

चढ़ते चढ़ते चढ़ जाओगे
मंजिल से मिलाती है मां

छूट जाते है संगी – साथी
बिछूड़ों को मिलाती है – ‘मां’

सीमाओं की सुरक्षा करने
सपूतों को बुलाती है भारत- ‘ मां’ ‘

संकल्प करो / प्रण करो
प्रयास को सिद्धि देती है शक्ति – ‘मां’

झुकते हैं किसान खेतों में
सोना उपजाती है धरती – ‘मां’

झुका लो शीश अपना
अशेष आशीष देती है- ‘ मां’
*****************”************************
@स्वरचित: घनश्याम पोद्दार
मुंगेर

Language: Hindi
120 Views
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