Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Dec 2024 · 7 min read

संदेह से श्रद्धा की ओर। ~ रविकेश झा।

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप लोग आशा करते हैं कि आप सब अच्छे और स्वस्थ होंगे और निरंतर ध्यान की ओर बढ़ रहे होंगे। आज बात कर रहे संदेह के बारे में संदेह कैसे उठता है और संदेह के रास्ते कैसे हम श्रद्धा तक पहुंच सकते हैं। संदेह क्या है संदेह बुद्धि का अंग है हम अक्सर कोई चीज़ को देखते हैं तो कोई विचार या कल्पना करते हैं और हम कुछ धारणा पकड़ लेते हैं लेकिन बुद्धि वही संदेह करता है क्योंकि उसे जानना है वह विश्वास नहीं करेगा जब तक उसे कुछ आउटपुट न मिल जाएं कुछ निष्कर्ष न निकल जाएं तब तक हम संदेह करते रहते हैं हम चेतन मन में घूमते रहते हैं। लेकिन हम निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं और श्रद्धा में उतर जाते हैं ये अवचेतन मन का हिस्सा है हम श्रद्धा में पहले से रहते हैं क्यूंकि जब कोई चीज़ देखते हैं उसे हम कुछ मानते हैं जैसे कोई उपकरण या जो दिखे कोई नाम दे देते हैं ताकि आगे संदेह मिटाने में हमें काम आ जाए। सबसे पहले हमें संदेह पर संदेह करना होगा ये संदेह कौन करता है आप पूरा संदेह करो जितना हो सके क्योंकि संदेह से कभी श्रद्धा कमज़ोर नहीं पड़ता बल्कि और विराट हो जाता है बढ़ जाता है। हमें संदेह पर संदेह करना होगा आखिर ये संदेह कौन करता है फिर श्रद्धा में कैसे उतर जाते हैं। उदाहरण के लिए कोई नास्तिक ध्यान में विश्वास नहीं है श्रद्धा भी नहीं है लेकिन कोई विशिष्ट गुरु को देखकर वह श्रद्धा में उतर सकता है अभी उसे संदेह था लेकिन गुरु को देखकर या संतुष्ट मन को देखकर वह संदेह मिटाने के लिए ध्यान में उतरेगा और अपने अनुभव से वह ध्यान को एक उपकरण मान सकता है क्योंकि उसे अनुभव हुआ है लेकिन वह विश्वास या श्रृद्धा में उतर सकता है मान सकता है कि गुरु जो कह रहे थे वह सत्य है। आप यहां संदेह और श्रद्धा को समझ रहे होंगे। लेकिन हमें एक चीज़ याद रखना होगा हम संदेह से श्रद्धा में आ सकते हैं लेकिन ये श्रद्धा में क्यों आ जाते हैं मानना क्यों है फिर हम पूर्ण नहीं जान पाएंगे हमें श्रद्धा और संदेह पर संदेह करना होगा तभी हम पूर्ण सत्य को उपलब्ध होंगे। अभी हम हृदय को जगा के रखे हैं फंस जाता है बात अभी बंद करके रखना होगा होश के साथ, ताकि ऊपर पूर्ण उठ सकें जाग सकें पूर्ण आकाश तक पहुंच जाएं। हमें संदेह पर पूर्ण संदेह करना होगा ये जानने वाला कौन है और अंत में मानने वाले कौन बचता है ये सब बात को निरीक्षण करना होगा।

संदेह की प्रकृति को समझना।

संदेह मानव स्वभाव का एक अभिन्न अंग है। यह मानदंडों पर सवाल उठाता है, विश्वासों के चुनौती देता है और जिज्ञासा को बढ़ाता है। अक्सर नकारात्मक रूप से देखे जाने वाला संदेह वास्तव में विकाश और परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक का काम कर सकता है। यह एक ऐसी यात्रा का प्रारंभिक बिंदु है जो गहरी समझ और पूर्ण ज्ञान की ओर ले जा सकती है। कई आध्यात्मिक और दार्शनिक संदर्भों में, संदेह विश्वास का दुश्मन नहीं बल्कि उसका अग्रदूत है। जब खुले दिमाग से संपर्क किया जाता है, तो यह गहन अंतर्दृष्टि और मज़बूत विश्वास की ओर ले जा सकता है जहां फिर संदेह नहीं उठता है क्योंकि हम संदेह को जान लेते हैं संदेह करने वाले को भी जान लेते हैं फिर संदेह नहीं बचता फिर हम पूर्ण शांति की ओर बढ़ जाते हैं फिर हम प्रेम करुणा के मार्ग पर आ सकते हैं क्योंकि हमें अपने स्वभाव को समझ जाते हैं पहले हम कर्तव्य समझते थे लेकिन हम कर्तव्य को अलग करके स्वभाव को जान लेते हैं कर्तव्य बाहरी है स्वभाव आंतरिक जिसको हम दमन करते हैं वही हमारा प्रिय मित्र हैं। हम चाहे तो जानते रहे अंत तक नहीं भी श्रद्धा रही कोई बात नहीं क्योंकि आप जान लेते हैं की आप एक है और जब ही श्रद्धा और विश्वास की बात होगी तो दो का आवश्कता पड़ेगा एक जिसपर विश्वास करना है जिसपे श्रद्धा रखना है और एक जो विश्वास करेगा श्रद्धा रखेगा इसीलिए ध्यानी पूर्ण मौन हो जाते हैं पूर्ण शांति में विश्वास रखते हैं नीचे आने से बचते हैं वह शून्य में खोए रहते हैं।

व्यक्तिगत विकास में संदेह की भूमिका।

व्यक्तिगत विकास में अनिश्चितता की जगह से स्पष्टता और दृढ़ विश्वास की जगह पर जाना शामिल होता है। संदेह व्यक्तियों को उत्तर खोजने, नए विचारों का पता लगाने और अंततः अपने स्वयं के सत्य की खोज करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह लोगों को उनके आराम क्षेत्र से बाहर निकालता है, उन्हें सीखने और विकसित होने के लिए प्रेरित करते हैं। संदेह को अपनाने से अधिक प्रामाणिक और सार्थक जीवन मिल सकता है। जब व्यक्ति अपनी अनिश्चितताओं का सामना करते हैं, तो वे आत्म-खोज के मार्ग पर चल पड़ते हैं जो लचीलापन और अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देते हैं। उन्हें जानने की आवश्कता है उन्हें और खोज करने ज़रूरत है।

संदेह से निपटने के लिए कदम।

जबकि संदेह जीवन का एक स्वाभाविक और आवश्यक हिस्सा है, इसे प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए जानबूझकर प्रयास की आवश्कता होती है। संदेह को विकाश के अवसर में बदलने में मदद करने के लिए यहां कुछ कदम दिए गए हैं।

संदेह को स्वीकार करें अपने संदेहों पर स्वयं को शिक्षित करें। पढ़ना, शोध करना और विभिन्न दृष्टिकोणों से जुड़ना स्पष्टता प्रदान कर सकता है। चिंतन करें आत्मनिरीक्षण में समय बिताएं, विचार करें कि आपके संदेह आपके मूल्यों और विश्वासों में बारे में क्या पता चलता है क्या आप सोचते हैं आपको चेतन मन में घूमना होगा देखना होगा ये संदेह कहां से आता है कौन संदेह करता है।

संदेह के माध्यम से विश्वास का निर्माण।

विडंबना यह है कि संदेह विश्वास का निर्माण करने में एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है। यदि पूर्ण संदेह किया जाए तब नहीं तो हम विश्वास और श्रद्धा को नहीं समझ पाएंगे क्योंकि हम बाहर से थोप देंगे उससे जटिलता बढ़ेगी न की स्पष्टता बढ़ेगी। मौजूदा विश्वासों को चुनौती देकर, व्यक्ति सत्य की खोज करने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर उनके विश्वासों में विश्वास और आत्मविश्वास की अधिक गहरी भावना पैदा होती है। यह प्रक्रिया विश्वास को निष्क्रिय स्वीकृति से सक्रिय खोज में रूपांतरण कर देती है। संदेह की नींव पर निर्मित विश्वास अक्सर अधिक मजबूत होता है क्योंकि इसका परीक्षण और गहनता से अन्वेषण किया जाता है। यह केवल विरासत के बजाय एक सचेत विकल्प बन जाता है। हम चाहे तो संदेह के माध्यम से विश्वास का निर्माण कर सकते हैं लेकिन हमें पूर्ण ज्ञान तक पहुंचना है सागर तक पहुंचना है फिर बुंद से बचना होगा, पूर्ण ज्ञान के लिए विश्वास को तोड़ना होता है किसपर विश्वास करेगा व्यक्ति, शरीर मिट्टी में मिल जाएगा आत्मा का कुछ पता नहीं ऊपर से थोप लिए हैं आत्मा कभी मरता नहीं पहले खोज तो कर लो ये भी एक तरह का विश्वास ही है। हमें पूर्ण जानना होगा संदेह और विश्वास पर भी संदेह करना होगा।

संदेह से विश्वास तक का सफ़र।

संदेह से विश्वास तक का सफ़र हमेशा सीधा या सीधा नहीं होता। इसमें अनिश्चितता, अन्वेषण और अंततः रहस्योद्घाटन के क्षण शामिल होते हैं। इस सफ़र के दौरान, व्यक्ति संदेह और विश्वास के बीच संतुलन बनाना जानते हैं, जिससे उन्हें अपने आस-पास की दुनिया की अधिक सूक्ष्म समझ प्राप्त होती है। आप धीरे धीरे श्रद्धा में उतर सकते हैं जैसे आपको स्पष्टता दिखेगा आप श्रद्धा में उतर जाएंगे हमें यहीं चूक कर देते हैं। संदेह पूर्ण हटेगा ध्यान से न की बाहरी चीजों से, हम संदेह मिटा कर क्या करेंगे ताकि श्रद्धा में आ सके, लेकिन जब संदेह करने वाले का पता चल जाएगा फिर आप श्रद्धा में नहीं आएंगे क्योंकि उसके लिए मन के साथ तालमेल बनाना होगा, मानना होगा लेकिन फिर शून्य का क्या होगा फिर हम पूर्ण शांति को कैसे उपलब्ध होंगे, इसीलिए ध्यान में एक ऐसा वक्त आता है जहां मानना और जानना जानने वाले कोई नहीं बचता बचता है बस शून्य मात्र होना बस दृष्टा, दृष्टा कभी श्रद्धा और विश्वास में विश्वास नहीं करेगा क्योंकि वह पूरा जान लिया है। वह स्थूल और सूक्ष्म से परे चला गया है अब वह नीचे लौटता है संसार में पड़ता है या नहीं वह अब उस पर निर्भर है। लेकिन एक बात तो पता चल गया जो परमात्मा की खोज के बाद जब परमात्मा दिखता है, फिर आप मांग नहीं सकते क्या मांगेगे परमात्मा ही मिल गया, इसीलिए हम यहां कहते हैं की प्रेम और करुणा हमारा स्वभाव है जब सब कुछ मिल जाएगा फिर आप सब कुछ लुटा दोगे क्योंकि अब आप सब कुछ जान गए हैं कि क्या करुणा है क्या कामना है फिर आप निष्काम और करुणा के पथ पर चलेंगे।

प्रतिदिन की जीवन में विश्वास को बढ़ावा देना।

एक बार जब आप सब कुछ जान लेते हैं फिर आप स्वयं पर श्रद्धा रखते हैं क्योंकि शरीर है लोग हैं आप कितना भी जान लिए लेकिन बुनियादी चीजों से स्वयं को अलग नहीं कर सकते, क्योंकि भीतिक शरीर मुख्य बुनियादी ढांचा है इसी से निर्माण अन्य शरीर है, लेकिन जब आप जान लेते हैं की किसका कैसे निर्माण हुआ है फिर आप संदेह नहीं करते बल्कि श्रद्धा करना ही एक उपाय बच जाता है। अगर आप चाहे तो क्योंकि जानने वाला कभी विश्वास में पड़ेगा बल्कि जानते जाएगा जानने वाले को भी। लेकिन हमें विश्वास हो जाता है हम मान लेते हैं कुछ, इसीलिए हम सांसारिक जीवन जीते भी है अगर पूर्ण सत्य पता चल जाएगा फिर आप जीवन में रस नहीं लेंगे बल्कि जीवन मृत्यु से परे चले जाएंगे। एक बार जब विश्वास स्थापित हो जाता है, तो जीवन में संतुलन और शांति बनाए रखने के लिए इसे बढ़ावा देना ज़रूरी हो जाता है। इसे ध्यान, सामुदायिक सहायता से जुड़ने और निरंतर जानने जैसे अभ्यासों के ज़रिए हासिल किया जा सकता है। लेकिन याद रहे होश के साथ हमें विश्वास में उतरना है। ध्यानी व्यक्तियों को अपने भीतर से जुड़ने की अनुमति देता है, जिससे शांति और स्पष्टता की भावना बढ़ती है। सामुदायिक साहयता प्रोत्साहन और साझा ज्ञान प्रदान करता है, जबकि निरंतर जानने से दिमाग खुला रहता है और विकाश के लिए ग्रहनशील रहता है। संदेह से विश्वास तक सफ़र बेहद व्यक्तिगत और परिवर्तनकारी होता है। व्यक्ति को अगर जानना है तो प्रश्न उठाना होगा लेकिन पूर्ण अगर जानना है तो मानना नहीं है संदेह करना है और अंत में संदेह पर भी संदेह करना होगा। तभी हम पूर्ण संतुष्ट और परमानंद को उपलब्ध होंगे। ध्यान रहे होश और जागरूकता अपने साथ रखना होगा।

धन्यवाद।🙏❤️
रविकेश झा।

101 Views

You may also like these posts

दोहा पंचक. . . . . गर्मी
दोहा पंचक. . . . . गर्मी
sushil sarna
कन्या भ्रूण हत्या
कन्या भ्रूण हत्या
Sudhir srivastava
गजल
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
संत रविदास!
संत रविदास!
Bodhisatva kastooriya
ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
Taj Mohammad
दर्द सहता हज़ार रहता है
दर्द सहता हज़ार रहता है
Dr Archana Gupta
तुम्हारी आंखें
तुम्हारी आंखें
Jyoti Roshni
गरीब कौन
गरीब कौन
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
प्यार विश्वाश है इसमें कोई वादा नहीं होता!
प्यार विश्वाश है इसमें कोई वादा नहीं होता!
Diwakar Mahto
दूसरों के हितों को मारकर, कुछ अच्छा बनने  में कामयाब जरूर हो
दूसरों के हितों को मारकर, कुछ अच्छा बनने में कामयाब जरूर हो
Umender kumar
युद्ध घोष
युद्ध घोष
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
23/40.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/40.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*आए फोटो में नजर, खड़े हुए बलवान (हास्य कुंडलिया)*
*आए फोटो में नजर, खड़े हुए बलवान (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
दीप उल्फ़त के
दीप उल्फ़त के
Dr fauzia Naseem shad
एक एक ईट जोड़कर मजदूर घर बनाता है
एक एक ईट जोड़कर मजदूर घर बनाता है
प्रेमदास वसु सुरेखा
अंतस  सूरत  आपरी, अवळूं घणीह आय।
अंतस सूरत आपरी, अवळूं घणीह आय।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
तेरा ही आभाव हैं
तेरा ही आभाव हैं
Er.Navaneet R Shandily
मौहब्बत
मौहब्बत
Phool gufran
मत फैला तू हाथ अब उसके सामने
मत फैला तू हाथ अब उसके सामने
gurudeenverma198
Most times, things that happen to us have the capacity to in
Most times, things that happen to us have the capacity to in
पूर्वार्थ
सुनाऊँ प्यार की सरग़म सुनो तो चैन आ जाए
सुनाऊँ प्यार की सरग़म सुनो तो चैन आ जाए
आर.एस. 'प्रीतम'
...
...
*प्रणय*
माया
माया
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
"आहट "
Dr. Kishan tandon kranti
रामचरितमानस दर्शन : एक पठनीय समीक्षात्मक पुस्तक
रामचरितमानस दर्शन : एक पठनीय समीक्षात्मक पुस्तक
श्रीकृष्ण शुक्ल
रोटी
रोटी
लक्ष्मी सिंह
कोई होटल की बिखरी ओस में भींग रहा है
कोई होटल की बिखरी ओस में भींग रहा है
Akash Yadav
निगाहें प्यार की ऊंची हैं सब दुवाओं से,
निगाहें प्यार की ऊंची हैं सब दुवाओं से,
TAMANNA BILASPURI
गीता श्लोक अध्याय 1: *अर्जुन विषाद योग* हिन्दी
गीता श्लोक अध्याय 1: *अर्जुन विषाद योग* हिन्दी
अमित
सरसी छंद
सरसी छंद
Neelofar Khan
Loading...