ख़ुमार ही ख़ुमार है ज़मीं से आसमान तक।

ख़ुमार ही ख़ुमार है ज़मीं से आसमान तक।
बिछी हुई बहार है ज़मीं से आसमान तक।
बशर तू मत समझना मालिकाना हक़ तेरा,
ख़ुदा ही साहूकार है ज़मीं से आसमान तक।।
डॉक्टर रागिनी स्वर्णकार,शर्मा
इन्दौर
ख़ुमार ही ख़ुमार है ज़मीं से आसमान तक।
बिछी हुई बहार है ज़मीं से आसमान तक।
बशर तू मत समझना मालिकाना हक़ तेरा,
ख़ुदा ही साहूकार है ज़मीं से आसमान तक।।
डॉक्टर रागिनी स्वर्णकार,शर्मा
इन्दौर