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24 Aug 2019 · 1 min read

विरह की आग

विजात छंद

विरह की आग है ऐसी,
बना तन राख के जैसी।

सहूँ यह वेदना कैसे,
हृदय में पीर भारी है।
बना बैरी पिया मेरा,
नयन में नीर भारी है।

लगी है चोट कुछ ऐसी,
बना तन राख के जैसी।

दुखी चुपचाप रोती हूँ,
कहाँ सुध-बुध हमारी है।
करो कुछ लौट कर आओ,
चढी तेरी खुमारी है।

कसक दिल में उठी ऐसी,
बना तन राख के जैसी।

मिले जो प्यार में तेरे,
सभी यादें पुरानी है।
खजाने से नहीं कुछ कम
पिया तेरी निशानी है।

कहानी बन गई ऐसी,
बना तन राख के जैसी।

लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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