छोड़ दिया ज़माने को जिस मय के वास्ते
रिश्तों के टूट जाने से भी बड़ी दुःख प्रक्रिया है ,
स्नेह की मृदु भावनाओं को जगाकर।
तेवरी कोई नयी विधा नहीं + नीतीश्वर शर्मा ‘नीरज’
परनिंदा या चुगलखोरी अथवा पीठ पीछे नकारात्मक टिप्पणी किसी भी
गौ नंदिनी डॉ विमला महरिया मौज
ग़ज़ल- हूॅं अगर मैं रूह तो पैकर तुम्हीं हो...
*माँ सरस्वती जी पर मुक्तक*
आजकल रिश्तें और मक्कारी एक ही नाम है।
इन तन्हाइयो में तुम्हारी याद आयेगी
तेरे होने का जिसमें किस्सा है
गुरु सर्व ज्ञानो का खजाना
*शाही दरवाजों की उपयोगिता (हास्य व्यंग्य)*
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
यदि कोई आपकी कॉल को एक बार में नहीं उठाता है तब आप यह समझिए