भय में जिंदगी

भय में जिंदगी
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पिंजरे में बंद जिंदगी/
भय में जिंदगी
कतरा- कतरा जिंदगी ।
दिन में, रात में
कई- कई बार मरती जिंदगी
अजीब सी सिहरन महसूस कराती जिंदगी/
मंद -मंद सी चलती जिंदगी ।
पल -प्रतिपल
रगों में दौड़ती जिंदगी/
एक अदृश्य डर के आगोश में समाती जिंदगी ।
ब्रह्मांडीय होती जिंदगी/
सांचे से बाहर निकलती जिंदगी/
संसार से जुड़ाव तोड़ती जिंदगी ।
पिंजरे में बंद जिंदगी
आजाद होना चाहती जिंदगी
कैसी करवट बदल रही जिंदगी…?
– मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक घर तारौली गूजर, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश, 283111