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11 May 2024 · 1 min read

बिंदियों की जगह

कभी जब मुझे उसकी,
दोनो भंवों के बीच,
वो चमकती लाल,
बिंदी नहीं दिखती….
उस दिन उसके,
चेहरे पर मुझे कोई,
रौनक नहीं दिखती….

मैं बोलता हूं जब तो,
वो माथा टटोलती है,
हाथ फेरती है बिस्तर पर,
फिर आईने मे देखती है..
हर चीज की घर मे,
एक पहले से तय जगह है,
सब जानते हैं कि,
क्या चीज किस जगह है…

लेकिन बिंदियों की उसकी,
तो घर भर मे ही जगह हैं,
वो अलमारियों मे चस्पा,
तो आईनो मे हर जगह है…..

वो झट से कहीं से जाकर,
एक बिंदी निकालती है,
माथे उसे लगा कर,
फिर मुझको निहारती है…..

वो जानती है यह ,
उसके माथे की ये चमक है,
ये श्रंगार की है पूर्णता,
मेरी भी यही ललक है…

©विवेक’वारिद’ *

Language: Hindi
58 Views
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