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5 May 2024 · 1 min read

आज असंवेदनाओं का संसार देखा।

असंवेदनाओं का नज़ारा बरकरार देखा,
मानवता को, बेसहारा हर बार देखा।
उन आँखों में बस तथ्य एवं तर्क की तलवार देखा,
बेबसी की चीखों को कफ़न के पार देखा।
उसने आज की परिस्थितियों में अतीत का सार देखा,
एवं आज के जख्मों पर एक और प्रहार देखा।
जीवन को अग्रसर होने से पूर्व, पीछे खींचती तार देखा,
मनोबल को तोड़ने का प्रयास हर एक बार देखा।
हर गलती की जिम्मेवारी में एक हीं, सर का भार देखा,
और सुखद भविष्य की आश में जलता हुआ संसार देखा।
अपने आँसुओं में बस नमकीन पानी की बौछार देखा,
हृदय की असहज गति एवं टूटती साँसों में तकरार देखा।
अपने दर्द में दुनिया का व्यापार देखा,
आज असंवेदनाओं का संसार देखा।

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