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27 Aug 2022 · 1 min read

*हम बीते युग के सिक्के (गीत)*

हम बीते युग के सिक्के (गीत)
________________________________
हम बीते युग के सिक्के अब कहीं नहीं चलते हैं
1
मर्यादा में बँधे हुए हम दुर्व्यवहार नहीं हैं
कर्फ्यू-दंगा लाने वाले हम त्यौहार नहीं हैं
छला नहीं हमने लोगों को लोग हमें छलते हैं
2
युग बदला पर रिश्वत लेना हमने कभी न चाही
भूख आसुरी-धन-सत्ता की हमने नहीं सराही
खामोशी से सुबह उठे जब शाम हुई ढलते हैं
3
जहाँ प्यार का रंग निखरता हम ऐसे मेले हैं
जहाँ एक बसुधा कुटुम्ब उस आँगन में खेले हैं
नेह भरे सपने मन के भीतर अब भी पलते हैं
—————————————–
रचयिताः रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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