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22 Feb 2024 · 1 min read

इश्क का कारोबार

इश्क का कारोबार

इश्क मुहब्बत इकरार तकरार,
ऐसा ही है इश्क का कारोबार,
प्रेम,परवाह,प्रीत ना जाने क्या,
गीले- गीले पत्तों सा व्यवहार ।

दिल की बंजर जमीं का खिलना,
प्यार की बूंद से होता मन -संचार ,
दिल धड़कता है उन्हीं के नाम से,
लूट जाता है तब दिल का बाजार।

इश्क का रंग गहरा चढता उन पर,
कितने जख्म देता यह हर बार,
खुशबूओं की तरह बिखर कर मन,
बहुत बार धोखा दे जाता है प्यार।

इतना भी सस्ता नहीं है इश्क करना,
कारोबार ऐसा दर्द दे जाता है हजार,
पल में हंसाता पल में हमें रूलाता,
मचलता, तरसता सा होता संसार।

हर साँस में कैद होती अनगिनत यादें,
जुदा, वफा, मिलन की आस अपार,
खुशियों का इजाफ़ा मुकर्रर कब होता,
कभी-कभार कोई समझता मेरा किरदार। ।

डा राजमती पोखरना सुराना

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