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20 Apr 2024 · 1 min read

मुहब्बत

मुहब्बत (गज़ल )

सनम तुम से यूँ मोहब्बत करके |
जी रही हूँ मैं यहाँ पर अब मरके॥

मैं कह तो देती फ़साना अपना |
सहम जाती हूँ मैं जहाँ से डरके॥

बढ़ते जाते हैं सितम दुनिया के |
लोग थकते नहीं लेकिन करके॥

तेरे ईश्क की मैं जोगन दिवानी |
पागल बनी मैं तुम्हें प्यार करके॥

तुम में बना लूंगी मैं छाप अपनी |
एक रोज मोहब्बत के रंग भरके॥

तुम हो ईबादत तुम हो उपासना |
तुमको ही चाहा है रहबर करके ॥
– डॉ० उपासना पाण्डेय, प्रयागराज

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