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20 Nov 2024 · 2 min read

sp16/17 कविता

sp16/17 कविता
****************
हुंकार जनित वाणी सुनकर भुजदंड मचलने लगते हैं
रिपुओं में भगदड़ मचती है दावानल जलने लगते हैं

आ गया समय कर अरि मर्दन है रणचंडी का अभिनंदन
शाश्वत कविता है ओज भरी भुजदंड मचलने लगते हैं
@
हम क्या थे क्या हो गए आज आभास कराती है कविता
हां कभी जगतगुरु था भारत एहसास कराती है कविता

कविता बनती है कूल कभी बनकर खिलती है फूल कभी
जीवन की आपाधापी में उल्लास जगाती है कविता
@
जो घटित हो रहा है आसपास आभास कराती है कविता
कुछ खुलें दिमागों को सच की दुनिया दिखलाती है कविता

बस कड़वा सच आसानी से दुनिया को समझ नहीं आता
तब रीति कुरीति का खुला फर्क क्या है बतलाती है कविता
@
तप्त जेठ की खडी दोपहर अंगार उबलता है सूरज
वैसे ही मानव के मन को कविता का ओज जगाता है
चाहे हो गहरी घनी रात या होने वाली भोर नई
क्या होती है अच्छी कविता सच्चा कवि ही बतलाता है
@
हूँ धनुर्धर लक्ष्य का संधान करना चाहता हूं
व्यूह भेदन का नया इतिहास गढ़ना चाहता हूं

टीका करू मां भारती के माथ पर अपने रुधिर से
कोटि अरि मुंडो से ये आकाश मढ़ना चाहता हूं

@
नहीं बंधे हैं पंख तुम्हारे रख हौसला उड़ान भरो
मंजिल खुद चलकर आएगी अपना शर संधान करो

आंख हो चिड़िया या मछली की बनो धनुर्धर अर्जुन से
है आशीष सोच रख शास्वत आपदाओ से नहीं डरो
@
वीरों का जोश जगाये जो हम उसको कविता कहते हैं
उनका उत्साह बढ़ाये जो हम उसको कविता कहते हैं

जिसको सुन कर रक्त शिराओं का लावा बन कर दौडे
चट्टानों को पिघलाये जो हम उसको कविता कहते हैं
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
यह भी गायब वह भी गायब

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