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20 Mar 2024 · 2 min read

सत्य यह भी

मैंने सच को सच कहा
झूठ को कहा झूठ
फिर भी निर्दयी दुनिया कह रही
मैं रहा सभी को लूट
सत्य सीधा साधा है
फिर भी इसकी राहों में बाधा हैं
झूठ के होते सिर पैर कहाँ
इसलिए पर्यावरण में तैर रहा
लेकर अनचाही अनगरल बातें
सोचो इनको कौन फैलाते
सच के पाँव हैं फिर भी
भटकता फिरता है
दुहाई देता फिरता है
दुनिया कितनी अड़ती है
हर बार सफाई उसे ही देनी पड़ती है
कि मैं सत्य हूँ
कभी झूठ ने कहा है कि
मैं झूठ हूँ
अगर मैं चींख चींख कर भी कहूँ
मैं सत्य हूँ मैं सत्य हूँ
तो भी विश्वास नहीं होता
वजूद को खोता रोता
उधर झूठ तरह तरह से अपनी फसलें बोता
एक झूठ के सहारे जीवन यापन होता है
रहने भी दो राज तो बस राज होता है
सत्य दर दर की ठोकर देता
कष्ट ,दुख और पीड़ा देता
मीठा सभी को सुहाता
लपर लपर चलती है जीभ
पर
जबसे इसको पता चला है
सत्य कड़वी दवा है
न चखती है न गटकती है
गलती से चख लिया हो तो
एकांत टटोला जाता है
जब राजा के सिर पर सींग उग आता है
तब कहीं पेड़ के खोखल में
सत्य उगला जाता है
सत्यवादी गुमराह हुए
साथ छोड़ रहे हैं पहरुहे
सत्य अब दिखता नहीं
देर तक टिकता नहीं
जनता धर्म उठाने से डरती नहीं
अब माँ पिता पुत्र की सौगंध कोई मायने रखती नहीं
बिसात न्याय की अब काली हो गयी
चेहरे से उठा पर्दा, भीतर जाली हो गयी
माँ की ममता मर गयी
अपनो का अपनत्व गया
सत गया सतीत्व गया
इंसानियत को इंसान
चाय की चुस्कियों में सुड़क सुड़क कर पी गया
सत्य का पर्याय, जल भरा लौटा उठाना
जल भरी अँजुरी
जो देता सत्य को मंजूरी
हालात बदले
बदले भी तो इतने
अब पानी पानी है
माँ सत्य नहीं
पिता सत्य नहीं
पानी भी तो सत्य नहीं
जिसकी पवित्रता की सौगंध खाई जाती थी
सत्य नहीं है गोचर कुछ भी
शक की तलवार तुझ पर भी लटकी है
आ देख जरा तेरी बनायी सृष्टि
कितनी भटकी है
घूँट भर भर अनुभवों की दवा मैंने भी घटकी है
सत्य का यह हाल देख
मैं तुझसे रूठा हूँ
सत्य का यह हाल देख
मैं तुझसे रूठा हूँ
पर आह ! विडम्बना पर आह ! विडम्बना
सबसे बड़ा तो मैं ही झूठा हूँ
सबसे बड़ा तो मैं ही झूठा हूँ ।।

भवानी सिंह “भूधर”
बड़नगर,जयपुर

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