स्वर्ग-नर्क प्रमाण

धर्मान्धता से कुंद मस्तिष्क हो तो क्या कहें ?
समूह मानसिकता जब सर चढकर बोले तो क्या करें ?
धर्म – रक्षा के छद्म में जब नारे गढ़े हों तो क्या करें ?
व्यक्तिगत सोच पर जब ताले पड़े हों तो क्या करें ?
अज्ञानियों के समूह में तिरस्कृत
ज्ञानी भी क्या करे ?
भेड़ चाल हो अग्रसर जनता तो उपेक्षित
मार्गदर्शक क्या करे ?
स्वर्ग की कल्पना की परिणति में जिन्हे
रसातल भी स्वीकार्य है ,
आपदा में मृत्यु का आलिंगन भी जिनके लिए
स्वर्ग का खुला द्वार है ,
स्वर्ग -नर्क के प्रयाण का ना कोई
तर्क संगत प्रमाण है ,
कर्मगति में स्वर्ग-नर्क अनुभूति का
प्रमाण यही वर्तमान है।