నేటి ప్రపంచం
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
सामाजिक बेचैनी का नाम है--'तेवरी' + अरुण लहरी
Every morning,we are born again.What we do today is,what mat
मेरा तो इश्क है वही, कि उसने ही किया नहीं।
आधुनिक टंट्या कहूं या आधुनिक बिरसा कहूं,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
रफ्ता रफ्ता हमने जीने की तलब हासिल की
ज्ञान से दीप सा प्रज्वलित जीवन हो।
सरपरस्त
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
डर, साहस, प्रेरणा,कामुकता,लालच,हिंसा,बेइमानी इत्यादि भावनात्
आकांक्षा पत्रिका समीक्षा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ये दिल्ली की सर्दी, और तुम्हारी यादों की गर्मी