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24 Apr 2024 · 1 min read

“बचपन”

“बचपन”
कंचे भौरे का खेल है वो
कैसा सुनहरा दौर है वो।
वो उछल कूद वो दौड़-धूप,
मस्ती के थे कई रंग-रूप।
वो सपनों की शहनाई बुलाती है,
रह-रह के वो जिन्दगी याद आती है.

3 Likes · 3 Comments · 264 Views
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