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29 Feb 2024 · 1 min read

अभी तो साँसें धीमी पड़ती जाएँगी,और बेचैनियाँ बढ़ती जाएँगी

अभी तो साँसें धीमी पड़ती जाएँगी,और बेचैनियाँ बढ़ती जाएँगी
अभी तो और ज्यादा बहेगा लहू,फिर रंग में काला पड़ेगा लहू
रूखी सूखी आँखों में फिर से आँसू आएँगे
तमन्ना फिर गिड़गिड़ाएगी,याचना में आधे ही फूटेंगे शब्द
मन को एक और पड़ेगी दुत्कार,ज़मीर और होगा तार-तार
गले में अटक जाएगा अपमान वाला घूँट,फिर हँसी पड़ेगी छूट
अभी एक और बार उम्मीद भरेगी दम,निकलते-निकलते निकलेगा दम
मरे हुए लोगों को,आसान मौत नहीं मिलती।

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