Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Feb 2024 · 1 min read

पगली

मैले – कुचले
कटे – फटे थे वस्त्र
मासूम सा चेहरा
डरी – सहमी निगाहें
अजीब सी वहशत से
दो – चार थी।

बेवजह हँसती, बार – बार
इधर – उधर देखती
यहाँ – वहाँ कुछ खोजती
दुनिया की हलचल
और रंगीनी से बेजार थी।

हमने देखा उसे तो पूछा
यह “पगली” आई कहाँ से
और है कौन …?

पता चला –
इंसान की हैवानियत
व नीचता का
जीता – जागता सबूत
वो लड़की सामूहिक
बलात्कार का शिकार थी।

रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।

Language: Hindi
1 Like · 254 Views
Books from Kanchan Khanna
View all

You may also like these posts

वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता...
वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता...
Ajit Kumar "Karn"
चैत्र नवमी शुक्लपक्ष शुभ, जन्में दशरथ सुत श्री राम।
चैत्र नवमी शुक्लपक्ष शुभ, जन्में दशरथ सुत श्री राम।
Neelam Sharma
बुरा वक्त
बुरा वक्त
Naseeb Jinagal Koslia नसीब जीनागल कोसलिया
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
कई बचपन की साँसें - बंद है गुब्बारों में
कई बचपन की साँसें - बंद है गुब्बारों में
Atul "Krishn"
अर्थ में प्रेम है, काम में प्रेम है,
अर्थ में प्रेम है, काम में प्रेम है,
Abhishek Soni
*लोकतंत्र के सदनों में
*लोकतंत्र के सदनों में
*प्रणय*
पोती
पोती
Sudhir srivastava
इस ज़मीं से  आसमान देख रहा हूँ ,
इस ज़मीं से आसमान देख रहा हूँ ,
Pradeep Rajput Charaag
जिससे मिलने के बाद
जिससे मिलने के बाद
शेखर सिंह
जीवन है कोई खेल नहीं
जीवन है कोई खेल नहीं
पूर्वार्थ
भगवान भले ही मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, और चर्च में न मिलें
भगवान भले ही मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, और चर्च में न मिलें
Sonam Puneet Dubey
चलो कहीं दूर जाएँ हम, यहाँ हमें जी नहीं लगता !
चलो कहीं दूर जाएँ हम, यहाँ हमें जी नहीं लगता !
DrLakshman Jha Parimal
যুঁজ দিওঁ আহক
যুঁজ দিওঁ আহক
Otteri Selvakumar
औरतें, क्यूं दलील देती हैं
औरतें, क्यूं दलील देती हैं
Shweta Soni
गंगा अवतरण
गंगा अवतरण
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Connectivity of a nature is a dexterity of the future.
Connectivity of a nature is a dexterity of the future.
Rj Anand Prajapati
बेहद मामूली सा
बेहद मामूली सा
हिमांशु Kulshrestha
चलो मनाएं नया साल... मगर किसलिए?
चलो मनाएं नया साल... मगर किसलिए?
Rachana
2660.*पूर्णिका*
2660.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कांटों में जो फूल खिले हैं अच्छे हैं।
कांटों में जो फूल खिले हैं अच्छे हैं।
Vijay kumar Pandey
122 122 122 12
122 122 122 12
SZUBAIR KHAN KHAN
छल छल छलका आँख से,
छल छल छलका आँख से,
sushil sarna
" साया "
Dr. Kishan tandon kranti
मोबाइल फोन
मोबाइल फोन
Rahul Singh
इन चरागों को अपनी आंखों में कुछ इस तरह महफूज़ रखना,
इन चरागों को अपनी आंखों में कुछ इस तरह महफूज़ रखना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मिट्टी के दीए
मिट्टी के दीए
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
कितने ही झूठ की बैसाखी बना लो,
कितने ही झूठ की बैसाखी बना लो,
श्याम सांवरा
रुके ज़माना अगर यहां तो सच छुपना होगा।
रुके ज़माना अगर यहां तो सच छुपना होगा।
Phool gufran
Loading...