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30 May 2024 · 1 min read

“” *भगवान* “”

“” भगवान “”
************

( 1 )” “, भरोसा
हो यदि स्वयं पे,
तो, चलें पाएं दर्शन हम भगवान के !
वह कहाँ नहीं रहता, है कण-कण में बसा..,
आओ, देखें उसे बन, प्रकृतिस्थ यहाँ पे !!

( 2 )” “, गर्वित
हूँ और हूँ परम सौभाग्यशाली,
कि, हुए प्रभु के साक्षात् श्रीदर्शन मुझे !
जब-जब हुआ श्रीहरि भक्ति में लीन यहाँ पे…,
तभी दौड़े चले आए, मनअंतस द्वारे प्रभु दर्शन देने l!!

( 3 )” वा “, वातायन
रखें मन का खोलकर ,
और देखें भगवान को सदा साक्षीभाव से !
सर्वदा रहें यहाँ डूबे अपने अंतःकरण में….,
तो हो जाएंगे दर्शन बैठे, प्रभु आत्माराम के !!

( 4 )” “, नमन
प्रणाम करता चलूँ नित वंदन,
और गाऊं भजन प्रातः श्रीहरि के !
और पाऊँ अप्रतिम अनुपम अद्वितीय दर्शन….,
देख सहस्त्र रश्मियों की सवारी करते भगवान को !!

( 5 )” भगवान “, भगवान
बसें जड़ चेतन सभी में,
नहीं उनका कोई रूप और न ही आकार !
चाहते हो ग़र, देखना भगवान को सच में…,
तो प्रकृतिस्थ बन, पंचमहाभूत तत्वों में देखें साकार!!

¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥

सुनीलानंद
गुरुवार,
30 मई, 2024
जयपुर,
राजस्थान |

Language: Hindi
162 Views
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