चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
कल्पित एक भोर पे आस टिकी थी, जिसकी ओस में तरुण कोपल जीवंत हुए।
क्या होगी इससे बड़ी, बुरी दूसरी बात
उम्दा हो चला है चाँद भी अब
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#नित नवीन इतिहास
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
हम उनकी भोली सूरत पर फिदा थे,
" दफ्तरी परिवेश का मीठ्ठा व्यंग्य "
"तुम जो भी कर्म करो प्रेम और सेवा भाव से करो क्योंकि अच्छे क
डॉ. सत्यकेतु विद्यालंकार और विकीपीडिया
तरुणाई इस देश की
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
हमे निज राह पे नित भोर ही चलना होगा।
Anamika Tiwari 'annpurna '