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14 May 2024 · 1 min read

अंक की कीमत

मैं जब कमाने लगा,
पैसों की कीमत समझने लगा,
आमदनी एक अंक नज़र आने लगा।

मग़र समझ न पाया,
उस अंक की कीमत,
जिसमें मैं बड़ा हुआ,
और उस अंक का हिसाब भी मैं लगाने लगा।

गणित में पूरा पक्का था,
नहीं करता था ज़रा भी हेर फेर,
माँ बाप के मुझ पर किए खर्चों का अनुमान लगाने लगा।

माँ ने कहा, दे सकोगे हिसाब,
तेरे लिए जागी रातों का,
सोई जहाँ तुमने भिगोए बिस्तरों का,
तुझे खिला भूखे पेट सोने का,
तेरे घर से दूर होने पर राह तकने का,
हर समय तेरे लिए बेसब्र रहने का,
दे सकोगे हिसाब,
तेरी चिंता में रोयी आँखों का।

सुन माँ की बातें मैं सिसकने लगा,
उनके किए त्याग को मै़ समझने लगा,
मैं इतना पढ़ लिख नहीं पाया था,
इतने बड़े अंक का हिसाब नहीं लगा पाऊँगा,
अच्छे से ये समझने लगा।

मैं जब कमाने लगा,
पैसों की कीमत समझने लगा,
आमदनी एक अंक नज़र आने लगा।

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