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31 Jan 2024 · 1 min read

Ghazal

یوں دل کو تھامے ہوے کھڑے ہیں
کہ دل کے دعوے بہت بڑے ہیں

احد و پیماں یہ وعدے تیرے
یہ پرزے کاغز کے کچھ پڑے ہیں

جلا دوں انکو مٹا دوں انکو
مگر نقش دل میں کچھ جڑےہیں

بلا کے گہرے ہیں کچھ وہ جملے
اٹھاؤ ہم کو گرے پڑے ہیں

گھروندے لفظوں کے ہیں ہمارے
ہم ان کے ہم راہ ہوے‌بڑے ہیں

کہیں بھی جاؤ کہیں سے گزرو
یہ تیرے غم ہر جگہ کھڑے ہیں

نہ ساتھ گزری تو کیا خوشی جو
ہمارے ہمراہ غم جڑے ہیں

यूं दिल को थामे हुए खड़े हैं
के दिल के दावे बहुत बड़े हैं

अहदो पैंमां ये वादे तेरे
ये पुर्ज़े क़ाग़ज़ के कुछ पड़े हैं

जला दूं इनको मिटा दूं इनको
मगर नक़्श दिल में कुछ जड़े हैं

बला के गहरे हैं कुछ वो जुमले
उठाओ हमको गिरे पडे़ हैं

घरौंदे लफ़्ज़ों के हैं हमारे
हम इन के हमराह हुए बड़े हैं

कहीं भी जाओ कहीं से गूज़रो
ये तेरे ग़म हर जगह खड़े हैं

न साथ गुज़री तो क्या ख़ुशी जो
हमारे हम राह ग़म जुड़े हैं

शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी

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