धर्मसंकट / मुसाफिर बैठा
उन्हें सपत्नीक कुंभ नहान को जाना है
इस कुंभ के
एक सौ चौआलीस साल बाद आने का अविरल संयोग
पत्नी के गले की फांस बना हुआ है
जाना ट्रेन से है और
ट्रेन में चल रही जानलेवा रेलमपेल
उधर पति को अपनी जान
धर्म से प्यारी बना रहा है
पत्नी के
धर्म से एलास्टिक लिमिट पार के प्यार पर
भारी बना रहा है
पति बेहिसाब धर्मभीरू नहीं है
न ही पत्नी के पल्लू से बंधा पति
भरसक कुंभ करने जाना टाल भी दे।