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19 Feb 2024 · 1 min read

तुम जो रूठे किनारा मिलेगा कहां

झूठ का दौर है झूठा हर ठौर है
मेरे सच को ठिकाना मिलेगा कहां
जब तलक तेरे दिल मे हूँ महफूज़ हूँ
तुम जो रूठे किनारा मिलेगा कहां।

धूप जलती रही छांव ढलती रही
मेरा सावन क्यों मुझसे रूठा रहा
पांव छाले पड़े विष के प्याले बड़े
प्यास बुझती नही दरिया सूखा रहा
तुम जो बरसे नही प्यार बनके पिया
जिंदगी को सहारा मिलेगा कहां।

मेरे घर से गायब उजाला किये
वो सरे आम कीचड़ उछाला किये
तेरी बातों पे जब से अमल कर लिया
मैंने कीचड़ में लाखों कमल कर लिया
गर उम्मीद का सिलसिला थम गया
हौसलों को इशारा मिलेगा कहाँ।

-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’

Language: Hindi
60 Views
Books from देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
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