तुम जो मिले तो
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
हृदय के भावों को लिखना खुद से बातें करना जैसा होता है। जब मैंने लिखना शुरू किया तो मैंने अपने भीतर के द्वंद्व को जाना और प्रत्यक्ष उसका अनुभव किया। जीवन के विभिन्न क्षणों में प्रेम, विरह, करुणा, वेदना, उमंग...