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25 Jan 2024 · 1 min read

किंकर्तव्यविमूढ़

एक दिन मैंने ज़िंदगी से पूछा
तुम इतनी निष्ठुर क्यों हो ?
ज़िंदगी बोली यह मेरा कसूर नहीं है ,
मैं तो हालातों के हाथों मजबूर हूँ ,

मैंने हालातो से कहा तुम क्यों
ज़िंदगी को मजबूर करती हो ?
हालातों ने जवाब दिया क्या करूँ ?
यह सब वक्त का किया धरा है ,

मैंने जब वक्त से पूछा क्यों
इस कदर हालातों को परेशान करते हो ?
वक्त ने कहा यह सब कुछ मुझसे
नियति करवाती है ,
मैं उसके हाथों मजबूर हूँ ,

जब मैंने नियति से पूछा तुम क्यों
वक्त को मजबूर बनाती हो ?
नियति बोली मैं क्या करूँ ?
प्रकृति मुझसे यह सब कुछ करवाती है ,

मैंने प्रकृति से प्रश्न किया तुम क्यों
नियति को यह सब करने के लिए बाध्य करती हो ?
प्रकृति ने उत्तर दिया इसमें मेरी कोई गलती नहीं है ,

यह सब मानव का किया धरा है ,
जिसने मेरा दोहन इस कदर किया है ,

कि मैं सुखदायी से दुःखदाई बन कर रह गई हूँ ,

मैं यह सुन किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह गया,
क्योंकि मेरे प्रश्न का उत्तर मुझे अपने में ही मिल गया।

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 269 Views
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